तुम मेरे जीवन में
नयी शुरुआत
नहीं , तुम तो
मेरे तमाम सत्कर्मों का फल हो
तभी तो पाकर तुम्हें
सार्थक हुआ जीवन है
ओ प्रिये सुनो
हर्षित है मन
पुलकित तन
हृदय में मधुर पीड़ा
जी चाहता है
पंछी बन उड़ चलूं
जहां है देश तुम्हारा
नदी, पहाड़,पठार लांघ
पंख तब तक ना थकें
जब तक देख ना लूं तुम्हें
और फिर तुम्हारे बांहों की
गरमाहट हो मेरा ईनाम
और कुछ चाह तो शेष नहीं अब...
रजनीश आनंद
26-11-16
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