रविवार, 18 दिसंबर 2016

आओ कुछ हम बदलें


आओ कुछ हम बदलें
कपड़ों से ही नहीं, सोच से भी
कुछ प्रगतिशील हो जायें हम
इस पितृसत्तामक समाज के
कुछ सोच से टक्कर लें हम
आओ कुछ हम बदलें.
बलात्कार नहीं, जीवन का अंत
यह तो है बस एक घिनौना सच
जिसके लिए जिम्मेदार
सिर्फ और सिर्फ पुरुष दंभ है
आओ कुछ हम बदलें.
प्रगतिशीलता का ढोंग करते
इस समाज की दोयम सोच है
महिलाओं को लेकर, इसलिए जरूरत है
देह से इतर खुद को
 स्थापित करें हम
आओ कुछ हम बदलें.
स्त्री की इज्जत कोई
कांच का मर्तबान नहीं
जो बलात्कर की
एक ठोकर से टूट जाये
शीलभंग होने से अपवित्र
अगर औरत होती है, तो
वह पुरुष क्योंकर पवित्र होगा
जिसने जबरन किया यह कृत्य है
इस सोच को आत्मसात करें हम
आओ कुछ हम बदलें
तन पर जबरन कब्जा करने वालों को
रोकर नहीं, अट्टाहास करके दिखायें हम
बलात्कार के बाद भी शान से
जीकर दिखायें हम
आओ कुछ हम बदलें...

रजनीश आनंद
19-12-16

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