गुरुवार, 29 दिसंबर 2016

मेरे शहर में तुम...

क्या कभी मेरे शहर की धरती को
चूम सकते हैं तुम्हारे कदम?
यह सोच उत्पन्न होते ही
सिहरन बन दौड़ जाता है
मेरे नस-नस में
आह!! काश
यह सुख मेरे शहर को नसीब हो
तुम्हारा स्पर्श पाते ही
मेरी हरी-भरी धरती
झूम उठेगी मानो
नव ब्याहता हो कोई
चाहती हूं, थाम कर
हाथ तुम्हारा घूम लूं
थोड़ा अपने शहर की गलियों में
कुछ पहचान हो जाये
मेरे शहर से तुम्हारी
ताकि जब जाओ तुम
मुझे छोड़ तन्हा
मेरे शहर की गलियां बन जाये
तुम्हारी बाहें और मैं
सिमटकर इनमें
सिसक लूं,झगड़ लूं
ताकि तुम्हारे होने का अहसास
रहे हमेशा मेरे शहर की गलियों में...

रजनीश आनंद
29-12-16

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