शनिवार, 24 दिसंबर 2016

अब बहुत दिन हुए तुम्हें देखे...

सुनो ना प्रिये!!
अब बहुत दिन हुए तुम्हें देखे
इन नयनों की प्यास
सही नहीं जाती
मैं अधीर नहीं
लेकिन क्या करूं
इस मन का जिसमें
पनप उठी यह चाह है
यूं तो यह मन कभी
तुमसे अलग नहीं हो पाता
लेकिन कहता है मुझसे
वर्षों गये बीत
प्रिये की मधुर वाणी
नहीं पड़ी कानों में
नहीं समाई उन बांहों के घेरे में
जो देते हैं सुकून और
सुरक्षा का अहसास,
जानते हो इस बार
मैं नहीं करूंगी वो गलती
जिससे मैं वंचित रह जाऊं
तुम्हारे अनुपम प्रेम से
हां, देखो ना मैंने उतार दिया है
लाज का हर आवरण
अब नहीं आयेगा यह
हमारे प्रेम के बीच
वैसे भी इसकी जरूरत
नहीं अब हमारे बीच
क्योंकि तुम सांसें
और मैं शरीर हूं...

रजनीश आनंद
24-12-16

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