सोमवार, 12 दिसंबर 2016

...और मेरा प्रेम परास्त होगा

इंतजार करती हूं तुम्हारा
हर पल तुममें खोकर
मन बाहर नहीं निकलना चाहता
इस प्रेमव्यूह को भेदकर
रचियता तुम इस प्रेमव्यूह के
जिसमें उलझी हूं मैं
क्या करूं जो हर सांस
आने से पहले लेती 
तुम्हारा नाम है
निहत्थे किया प्रवेश मैंने
इस व्यूह रचना के अंदर
बस तुम्हारे नाम की तलवार ही
मेरा एकमात्र सहारा है
भरोसा है, मुझे अपनी तलवार पर
यह मुझे विजयश्री दिलवाएगी
देखना तुम उस दिन
प्रेम मेरा अमर होगा
हार मेरी तब है जब तुम,
ठुकराओ प्रेम निवेदन
लेकिन अडिग है विश्वास 
मेरा अपने पावन प्रेम पर
तुम बांहों में भरने मुझे 
खुद चलकर आओगे
जो ये ना कर पायी मैं
शस्त्र डाल दूंगी उस दिन
मेरा प्रेम परास्त होगा
और नश्वर मेरा तनमन...

रजनीश आनंद
11-12 16

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