शनिवार, 10 दिसंबर 2016

अमावस है, तो पूनम की रात भी है...

क्या है कविता का विज्ञान?
मैं नहीं जानती
मैं तो बस अपने भाव
संप्रेषित करती हूं तुमतक
जब भी सोचती हूं तुम्हें
एक टीस सी उठती है मन में
और पनपनता है प्रेमभाव
दिमाग में घुमड़ते हैं,कुछ शब्द
जिन्हें कलम के सहारे
कागज पर उतार देते हैं मेरे हाथ
अगर ये कविता है, तो फिर
कविता ही सही, लेकिन
मेरी कविता के हर शब्द में
लिखा है तुम्हारा नाम
बचपन में सहेलियों संग
खेला करती थी एक खेल
दोनों हथेलियों को जोड़
हाथ की लकीरों से
बनाती थी अर्द्धचंद्र
इस सोच के साथ
कि जिसके हाथ बनेगा
अर्द्धचंद्र, उसका प्रिय होगा
चांद सा सुंदर
तब से आज तक
तुम्हारे इंतजार में मैंने
रोज जोड़ा अपने
हथेलियों की लकीरों को
आकर देखो ना कितना
सुंदर चांद बनता है
मेरी हथेलियों में
बिलकुल तुम्हारी तरह
ओ ‘रजनीश’ के चांद
सुनो मेरी बात
जैसे तुम एक नाप में
नहीं दिखते कभी
वैसे ही, मेरे नसीब में है
तुम्हारा प्रेम, लेकिन अमावस है
अगर, तो पूर्णिमा की भी होती है एक रात
उस रात अपने मस्तक को रखकर
मेरे सीने पर तुम सुन लेना
क्या कहता है मेरा मन

रजनीश आनंद
10-12-16

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